विष्णु मंत्र | Vishnu Mantra​

विष्णु भगवान हिंदू धर्म के प्रमुख त्रिदेवों में से एक हैं, जिन्हें पालनकर्ता के रूप में जाना जाता है। उनकी पूजा और स्तुति करने से  हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। मंगलम भगवान विष्णु मंत्र (Vishnu Mantra​) का उच्चारण न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है, बल्कि भक्तों को कठिनाइयों से उबरने में भी सहायता करता है।
“श्री विष्णु जी के मंत्र” जैसे कि “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” और “शान्ताकारं भुजंगशयनं” का जाप करने से भक्त को मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आत्मिक संतोष मिलता है। इस लेख में हम विष्णु भगवान के प्रमुख मंत्र और उनकी महिमा, महत्व, और उनकी पूजा विधि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

मंगलम भगवान विष्णु मंत्र: भगवान विष्णु की महिमा और उनके प्रति भक्ति को व्यक्त करने के लिए की जाने वाली प्रार्थनाएँ, मंत्र, और स्तोत्रों का एक संग्रह है। ये स्तुतियाँ भगवान विष्णु की विभिन्न लीलाओं, उनके स्वरूपों, और गुणों का वर्णन करती हैं। मंगलम भगवान विष्णु स्तुति का नियमित जाप और पाठ करने से भक्तों को भगवान की कृपा प्राप्त करने, जीवन में संकटों से मुक्ति पाने, और आत्मिक शांति की ओर अग्रसर होने में सहायता प्राप्त होती है।

श्री विष्णु जी के मंत्र हिंदी में

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।।

मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-
यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥

औषधे चिंतये विष्णुम भोजने च जनार्धनम
शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिम
युद्धे चक्रधरम देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं
नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे

दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दम संकटे मधुसूधनम
कानने नारासिम्हम च पावके जलाशयिनाम
जलमध्ये वराहम च पर्वते रघु नन्दनं
गमने वामनं चैव सर्व कार्येशु माधवं ॥

षोडशैतानी नमानी प्रातरुत्थाय यह पठेत
सर्वपापा विर्निमुक्तो विष्णुलोके महीयते ॥

श्री विष्णु भगवान के प्रमुख मंत्रो का हिंदी में अर्थ और सार:

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।।

मंत्र में प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ:

  • शुक्लाम्बरधरं: श्वेत (सफेद) वस्त्र धारण करने वाले
  • विष्णुं: भगवान विष्णु
  • शशिवर्णं: चंद्रमा के समान वर्ण वाले
  • चतुर्भुजम्: चार भुजाओं वाले
  • प्रसन्नवदनं: प्रसन्न मुख वाले
  • ध्यायेत्: ध्यान करें
  • सर्वविघ्नोपशान्तये: सभी विघ्नों (बाधाओं) की शांति के लिए

अर्थ: श्वेत वस्त्र धारण करने वाले, चंद्रमा के समान तेजस्वी, चार भुजाओं वाले भगवान विष्णु का ध्यान करें। वे प्रसन्न मुखमंडल वाले हैं। उनके ध्यान से सभी विघ्नों का नाश होता है और शांति प्राप्त होती है।

मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

मंत्र में प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ:

  • मङ्गलम्: शुभ, कल्याणकारी
  • भगवान विष्णु: भगवान विष्णु
  • गरुणध्वज: जिनका ध्वज गरुण है
  • पुण्डरीकाक्ष: जिनकी आँखें कमल के समान हैं
  • तनो हरि: जिनका शरीर भगवान हरि (विष्णु) है

अर्थ: भगवान विष्णु, जो गरुड़ध्वज (गरुड़ को ध्वज के रूप में धारण करने वाले) हैं, जो कमल के समान नेत्रों वाले हैं, और जो मंगलमयी शरीर वाले हरि हैं, वे सबके लिए मंगलकारी हैं। उनकी उपस्थिति ही सबके लिए मंगलमय है।

सार: इन श्लोकों में भगवान विष्णु की प्रशंसा और उनके मंगलमयी स्वरूप का वर्णन किया गया है। पहले श्लोक में उनके श्वेत वस्त्र, चंद्रमा के समान वर्ण, और चार भुजाओं के साथ उनके ध्यान करने का महत्व बताया गया है, जिससे सभी विघ्नों का नाश होता है। दूसरे श्लोक में भगवान विष्णु की उपासना करते हुए कहा गया है कि वे स्वयं मंगलमय हैं, और उनकी पूजा से जीवन में सभी प्रकार की सफलता प्राप्त होती है।

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

मंत्र में प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ:

  • शान्ताकारं: शांत स्वभाव वाले
  • भुजगशयनं: जो शेषनाग पर शयन करते हैं
  • पद्मनाभं: जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है
  • सुरेशं: देवताओं के राजा
  • विश्वाधारं: जो समस्त विश्व का आधार हैं
  • गगनसदृशं: जो आकाश के समान व्यापक हैं
  • मेघवर्णं: जिनका रंग मेघ (बादल) के समान है
  • शुभाङ्गम्: जिनके अंग शुभ हैं
  • लक्ष्मीकान्तं: लक्ष्मी के पति
  • कमलनयनं: जिनकी आँखें कमल के समान हैं
  • योगिभिः ध्यानगम्यं: जो योगियों के ध्यान में आने योग्य हैं
  • वन्दे: मैं वंदना करता हूँ
  • विष्णुं: भगवान विष्णु
  • भवभयहरं: जो जन्म-मृत्यु के भय को हरते हैं
  • सर्वलोकैकनाथम्: जो सभी लोकों के एकमात्र स्वामी हैं

अर्थ: मैं भगवान विष्णु की वंदना करता हूँ, जो शांति के स्वरूप हैं, जो शेषनाग पर शयन करते हैं, जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जो देवताओं के ईश्वर हैं, जो सम्पूर्ण विश्व के आधार हैं, जो आकाश के समान व्यापक और मेघ के समान वर्ण वाले हैं, जिनका शरीर शुभ है। वे लक्ष्मी के पति हैं, जिनके नेत्र कमल के समान हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान में धारण किए जाते हैं, और जो संसार के सभी भयों को हरने वाले (हरण करने वाले) तथा सभी लोकों के एकमात्र स्वामी हैं।

सार: इस श्लोक में भगवान विष्णु के शांत और सौम्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। वे शेषनाग पर शयन करते हैं, उनकी नाभि से कमल की उत्पत्ति होती है, और वे देवताओं के स्वामी हैं। उनका रंग मेघ के समान है, और वे लक्ष्मी के पति हैं। उनके नेत्र कमल के समान हैं, और वे योगियों के ध्यान में धारण किए जाते हैं। भगवान विष्णु सभी जीवों के लिए भय को दूर करने वाले हैं और सम्पूर्ण संसार के स्वामी हैं। इस श्लोक के माध्यम से भक्त भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करते हुए उनकी कृपा की कामना करता है।

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै:
वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो
यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।

मंत्र में प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ:

  • यं: जिनकी (भगवान की)
  • ब्रह्मा: ब्रह्मा जी
  • वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: वरुण, इन्द्र, रुद्र (शिव) और मरुत (वायुदेव)
  • स्तुन्वन्ति: स्तुति करते हैं
  • दिव्यैः: दिव्य
  • स्तवैः: स्तोत्रों से
  • वेदैः: वेदों से
  • साङ्गपदक्रमोपनिषदैः: अंग, पदक्रम और उपनिषदों के साथ
  • गायन्ति: गाते हैं
  • यं: जिनकी (भगवान की)
  • सामगा: सामवेद गाने वाले (गायक)
  • ध्यानावस्थिततद्गतेन: ध्यान में स्थित, उस (भगवान) तक पहुँचे हुए मन से
  • मनसा: मन से
  • पश्यन्ति: देखते हैं
  • यं: जिनकी
  • योगिनः: योगी
  • यस्य: जिनका
  • अंतं: अंत
  • न विदुः: नहीं जानते
  • सुरासुरगणाः: देवता और असुरगण
  • देवाय: देवता को (यहाँ भगवान विष्णु को)
  • तस्मै: उन्हें
  • नमः: नमस्कार

अर्थ: मैं उस देवता (भगवान विष्णु) को प्रणाम करता हूँ, जिसकी स्तुति ब्रह्मा, वरुण, इंद्र, रुद्र और मरुतगण दिव्य स्तोत्रों द्वारा करते हैं। जिनका गायन वेद, उसके अंग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष), पदक्रम और उपनिषदों के साथ सामवेद के गायक करते हैं। योगीजन ध्यानावस्थित होकर जिनका मन से दर्शन करते हैं, और जिनका अंत न देवता जानते हैं, न असुर। ऐसे देवता को मैं प्रणाम करता हूँ।

सार: इस श्लोक में भगवान विष्णु की अपार महिमा का वर्णन किया गया है। भगवान विष्णु की स्तुति स्वयं ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र और अन्य देवता करते हैं। वेद और उपनिषदों में उनकी महिमा का गायन किया जाता है। योगीजन मन को स्थिर कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं, और उनके दिव्य स्वरूप का दर्शन करते हैं। इस श्लोक के माध्यम से भक्त भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करता है और उन्हें नमस्कार करता है।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव॥

मंत्र में प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ:

  • त्वम्: आप (यहाँ भगवान को संबोधित करते हुए)
  • एव: ही
  • माता: माता (मां)
  • च: और
  • पिता: पिता
  • त्वमेव: आप ही (हो)
  • बन्धुः: बन्धु (रिश्तेदार)
  • सखा: मित्र
  • विद्या: ज्ञान, शिक्षा
  • द्रविणम्: धन-सम्पत्ति
  • सर्वम्: सब कुछ
  • मम: मेरा
  • देव: देवता (यहाँ भगवान)

अर्थ: हे भगवान! आप ही मेरी माता हैं, आप ही मेरे पिता हैं, आप ही मेरे बंधु (संबंधी) हैं, और आप ही मेरे सखा (मित्र) हैं। आप ही मेरी विद्या (ज्ञान) हैं, आप ही मेरी संपत्ति हैं। हे देवों के देव! आप ही मेरे सब कुछ हैं।

सार: इस श्लोक में भक्त भगवान को अपने जीवन का सर्वस्व मानते हुए कहता है कि भगवान ही उसके माता-पिता, मित्र, संबंधी, ज्ञान और धन हैं। इस श्लोक के माध्यम से भगवान के प्रति समर्पण की भावना प्रकट होती है, जहाँ भक्त कहता है कि उसके जीवन का प्रत्येक पहलू भगवान से ही संबंधित है। यह श्लोक भक्ति, श्रद्धा, और समर्पण की चरम सीमा को व्यक्त करता है, जहाँ भक्त अपने जीवन की हर आवश्यकता और हर संबंध के लिए केवल भगवान पर ही निर्भर करता है।

औषधे चिंतये विष्णुम भोजने च जनार्धनम्
शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिम्।
युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमम्
नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे।।

मंत्र में प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ:

  • औषधे: औषधि लेते समय
  • चिंतये: स्मरण करें
  • विष्णुं: भगवान विष्णु को
  • भोजने: भोजन करते समय
  • जनार्धनम्: जनार्दन (भगवान विष्णु का एक नाम)
  • शयने: शयन (सोते समय)
  • पद्मनाभं: पद्मनाभ (भगवान विष्णु का एक नाम जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है)
  • विवाहे: विवाह करते समय
  • प्रजापतिम्: प्रजापति (सृष्टि के निर्माता)
  • युद्धे: युद्ध करते समय
  • चक्रधरं: चक्रधारी (भगवान विष्णु)
  • देवं: देवता (भगवान)
  • प्रवासे: प्रवास (यात्रा) करते समय
  • त्रिविक्रमम्: त्रिविक्रम (भगवान विष्णु का वामन अवतार)
  • नारायणं: नारायण (भगवान विष्णु)
  • तनु त्यागे: शरीर त्यागते समय
  • श्रीधरं: श्रीधर (भगवान विष्णु)
  • प्रिय संगमे: प्रियजन के संगम (मिलन) के समय

दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम्
कानने नारसिंहं च पावके जलाशयिनम्।
जलमध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम्
गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम्।।

मंत्र में प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ:

  • दुःस्वप्ने: दुःस्वप्न (बुरे सपने) में
  • स्मर: स्मरण करें
  • गोविन्दं: गोविन्द (भगवान कृष्ण)
  • संकटे: संकट (कठिनाई) में
  • मधुसूदनम्: मधुसूदन (भगवान विष्णु का एक नाम)
  • कानने: वन (जंगल) में
  • नारसिंहं: नृसिंह (भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार)
  • पावके: अग्नि में
  • जलाशायिनम्: जलाशय (सागर) में शयन करने वाले भगवान
  • जलमध्ये: जल (पानी) के बीच
  • वराहम्: वराह (भगवान विष्णु का वराह अवतार)
  • पर्वते: पर्वत पर
  • रघुनन्दनम्: रघुनन्दन (भगवान राम)
  • गमने: यात्रा (चलते समय) में
  • वामनं: वामन (भगवान विष्णु का वामन अवतार)
  • चैव: और
  • सर्व कार्येषु: सभी कार्यों में
  • माधवम्: माधव (भगवान कृष्ण)

अर्थ:

  1. औषध (दवाई) लेते समय भगवान विष्णु का चिंतन करें, भोजन करते समय जनार्दन का स्मरण करें, शयन करते समय पद्मनाभ का ध्यान करें, और विवाह के समय प्रजापति का स्मरण करें।
  2. युद्ध के समय चक्रधारी भगवान का ध्यान करें, यात्रा करते समय त्रिविक्रम का स्मरण करें, शरीर छोड़ने के समय नारायण का ध्यान करें, और प्रिय संगति के समय श्रीधर का स्मरण करें।
  3. दुःस्वप्न आने पर गोविन्द को स्मरण करें, संकट के समय मधुसूदन का ध्यान करें, जंगल में नारसिंह का स्मरण करें, और अग्नि के समय जलाशयिन (भगवान विष्णु का समुद्र में निवास रूप) का ध्यान करें।
  4. जल के मध्य में वराह का स्मरण करें, पर्वत पर रघुनन्दन (राम) का ध्यान करें, यात्रा के समय वामन का स्मरण करें, और सभी कार्यों में माधव का स्मरण करें।

सार: यह श्लोक हमें बताता है कि जीवन के हर क्षण में, हर परिस्थिति में भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों का स्मरण करना चाहिए। उनके विविध रूप हमें हर स्थिति में संबल प्रदान करते हैं, चाहे वह स्वास्थ्य, भोजन, युद्ध, यात्रा, या संकट हो। इस श्लोक का अनुसरण करके, हम अपने जीवन में भगवान की उपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं और उनके संरक्षण में सुरक्षित रह सकते हैं।

षोडशैतानी नमानी प्रातरुत्थाय य: पठेत्
सर्वपापा विर्निमुक्तो विष्णुलोके महीयते ॥

मंत्र में प्रयोग होने वाले शब्दों के अर्थ:

  • षोडशैतानि: ये सोलह (नाम)
  • नमानि: नाम
  • प्रातरुत्थाय: प्रातःकाल उठकर
  • यः: जो (व्यक्ति)
  • पठेत्: पाठ करता है
  • सर्वपाप: सभी पाप
  • विर्निमुक्तः: मुक्त (हो जाता है)
  • विष्णुलोके: विष्णु के लोक में (विष्णुधाम में)
  • महीयते: सम्मानित होता है

अर्थ: जो व्यक्ति प्रतिदिन सुबह उठकर भगवान विष्णु के इन 16 नामों का पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और विष्णुलोक में सम्मानपूर्वक स्थान प्राप्त करता है।

सार: इस श्लोक में भगवान विष्णु के 16 नामों का स्मरण करने का महत्व बताया गया है। यह माना जाता है कि भगवान विष्णु के इन पवित्र नामों का जाप करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद उसे विष्णुलोक में स्थान मिलता है। यह श्लोक भक्तों को प्रेरित करता है कि वे प्रतिदिन सुबह भगवान विष्णु के इन नामों का जाप करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

मंगलम भगवान विष्णु: महिमा और महत्व

विष्णु भगवान की महिमा अनंत और अद्वितीय है। उन्हें सृष्टि का पालनकर्ता माना जाता है। विष्णु भगवान के मंत्र जीवन में सकारात्मकता लाते हैं और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं। इन मंत्रों का जाप करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन में सुख-शांति आती है।
विष्णु भगवान के विभिन्न अवतार जैसे राम और कृष्ण की पूजा और मंत्रों का महत्व युगों से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। विष्णु मंत्र भक्तों को विपत्तियों से बचाने और समृद्धि लाने में सहायक होते हैं।

विष्णु भगवान के मंत्र: करने का शुभ समय और दिन

  1. विष्णु भगवान की पूजा के लिए गुरुवार और एकादशी का दिन सबसे शुभ माना जाता है।
  2. सुबह के समय, सूर्योदय से पहले, उनकी पूजा का आदर्श समय है।
  3. अमावस्या और पूर्णिमा के दिन विष्णु मंत्रों का जाप विशेष फलदायी होता है।
  4. रात्रि के समय उनकी आरती और स्तुति से मानसिक शांति मिलती है।

क्या न करें:

  • अशुद्ध अवस्था में पूजा न करें।
  • क्रोध या नकारात्मक भावनाओं के साथ मंत्रों का जाप न करें।

विष्णु भगवान के मंत्र: करने की सही विधि

  1. सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. विष्णु भगवान की मूर्ति या तस्वीर को पीले फूल अर्पित करें।
  3. दीपक जलाकर मंत्र का जाप करें: “ओम नमो भगवते वासुदेवाय”
  4. तुलसी के पत्तों से भगवान को भोग लगाएं।
  5. पूजा के अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

ध्यान रखें:

  • पूजा के दौरान मन शांत और एकाग्र रखें।
  • मंत्रों का सही उच्चारण सुनिश्चित करें।

विष्णु भगवान के मंत्र: कौन कर सकता है और कौन नहीं कर सकता है

कर सकते हैं:

  • सभी श्रद्धालु जो भगवान विष्णु में विश्वास रखते हैं।
  • परिवार के सभी सदस्य, विशेष रूप से गुरुवार के दिन।

नहीं कर सकते:

  • जो व्यक्ति अशुद्ध अवस्था में हो।
  • अत्यधिक नकारात्मक और अनुशासनहीन व्यक्ति।

श्री विष्णु जी के मंत्र: करने के लाभ (फायदे)

  1. मानसिक शांति और आत्मिक संतोष।
  2. घर में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन।
  3. कठिन परिस्थितियों में समाधान की प्राप्ति।
  4. नकारात्मक ऊर्जा से बचाव।
  5. अध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य और जानकारी:

  1. विष्णु भगवान की पूजा में तुलसी के पत्ते अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
  2. विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जीवन में सभी समस्याओं का समाधान करता है।
  3. भगवान विष्णु के 10 अवतार (दशावतार) को स्मरण करना उनकी कृपा प्राप्ति का साधन है।

निष्कर्ष:

विष्णु भगवान मंत्रों का जाप जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करता है। उनकी पूजा और आरती से भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का निवास होता है। नियमित रूप से मंत्रों का उच्चारण करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):

  1. विष्णु भगवान का सबसे प्रभावी मंत्र कौन सा है?
    “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” सबसे प्रभावी और लोकप्रिय मंत्र है।
  2. विष्णु मंत्र का जाप कब करें?
    सुबह सूर्योदय से पहले या गुरुवार को मंत्र का जाप करना शुभ होता है।
  3. क्या विष्णु मंत्र केवल गुरुवार को ही जाप सकते हैं?
    नहीं, आप किसी भी दिन यह मंत्र जाप कर सकते हैं, परंतु गुरुवार विशेष फलदायी है।
  4. क्या मंत्र जाप के लिए तुलसी अनिवार्य है?
    हां, तुलसी विष्णु भगवान को अत्यंत प्रिय है।
  5. विष्णु भगवान की पूजा के दौरान क्या नहीं करना चाहिए?
    क्रोध और नकारात्मक भावनाओं से बचें।
  6. क्या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना अनिवार्य है?
    यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन इसे करने से विशेष लाभ मिलता है।
  7. क्या महिलाएं विष्णु भगवान का मंत्र जाप कर सकती हैं?
    हां, महिलाएं भी मंत्र जाप कर सकती हैं।
  8. क्या विष्णु मंत्र जाप से धन की प्राप्ति होती है?
    यह मानसिक शांति और सकारात्मकता लाकर समृद्धि का कारण बनता है।
  9. विष्णु भगवान की पूजा में कौन से रंग के वस्त्र पहनने चाहिए?
    पीले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
  10. क्या विष्णु भगवान के सभी अवतारों की पूजा करनी चाहिए?
    हां, इससे भगवान विष्णु की संपूर्ण कृपा प्राप्त होती है।

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